अपनों से हारे कमलनाथ, अहंकार पर भारी पड़े अपने
अपनों से हारे कमलनाथ, अहंकार पर भारी पड़े अपने

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♦ विजया पाठक


आखिरकार मुख्यमंत्री कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, जिसका अंदेशा काफी समय से लगाया जा रहा था। पिछले एक पखवाड़े से चल रहे सियासी ड्रामे का अंत तब हुआ जब कमलनाथ ने फ्लोर टेस्ट  के पहले ही राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया क्योंकि उनको पता था कि सरकार अब बहुमत में नही हैं। वैसे तो कमलनाथ सरकार गिरने के कई कारण गिनाए जा सकते है, लेकिन सबसे प्रमुख कारण रहा अपनों का बागी होना, नाराज होना।


कमलनाथ अब जिंदगी भर उन 22 कांग्रेस के बागी विधायकों, मंत्रियों को नहीं भूल पाएंगे जिनके कारण वह सत्ता से बेदखल हुए। ये 22 साथी वही हैं जिनको पिछले 15 माह से कमलनाथ ने कभी अपना समझा ही नहीं। कहने को ये भले ही सत्तासीन सरकार के विधायक, मंत्री थे मगर इनके साथ व्यवहार गैरों जैसा होता था। आज कमलनाथ आत्ममंथन कर रहे होंगे कि उन्होंने अपने साथियों के साथ बड़ी नाइंसाफी की थी। आज भले ही बातें की जा रही हैं कि ये बागी विधायक सिंधिया सम‍र्थक थे लेकिन सच्चाई इतनी भर नहीं है। सिर्फ 5-6 विधायकों को छोड़ दिया जाए तो बाकी विधायक सचमुच कमलनाथ के व्यवहार और बर्ताव से काफी नाराज थे।


जिसका ही नतीजा था कि उन्होंने अपनी विधायिकी तक को दांव पर लगा दिया। सिर्फ 15 माह में विधायक जैसा पद को दांव पर लगाना बड़ी बात है। ये बागी विधायक कोई बड़े राजघराने या पैसे वाले भी नहीं थे, बड़ी मुश्किल से चुनाव जीतकर आए थे। लेकिन कमलनाथ के अहंकार और अकड़ के सामने इन विधायकों की अंतरआत्मा जवाब दे गई और सरकार की खिलाफत पर उतर आए। यह कमलनाथ का अहंकार ही था कि वे एक बार भी बेंगलुरू में इन विधायकों से मिलने नहीं पहुँचे। दिग्विजय सिंह को पहुंचाया, लेकिन विधायकों ने दिग्विजय सिंह से भी मिलने से मना कर दिया।


अपने सियासी राजनीतिक जीवन में कमलनाथ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उन्हें  अपनों की चाह (पुत्र नकुलनाथ) और अपनों की नाराजगी (बागी विधायक) की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के लिए ऐड़ी चोट का दांव लगाया था। आर्थिक रूप से भी उन्होंने पार्टी को सहयोग किया था, लेकिन कमलनाथ सत्ता का सुख ज्यादा नहीं भोग पाए। राजनीति के चाणक्य  कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह भी सरकार भी नहीं बचा पाए। दिग्विजय सिंह ने भले ही सरकार को बचाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी लेकिन दिग्विजय सिंह की ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मनमुटाव सरकार को ले डूबा।


यदि दिग्विजय सिंह चाहते थे तो सिंधिया को साध सकते थे और अपने अहम से समझौता कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा किया ही नहीं। अब कमलनाथ सरकार तो गिर गई पीछे छोड़ गई दिग्गजों का आत्ममंथन। ये दिग्गज गिन-गिन के अपनी गलतियों को गिनेंगे। मेरा मानना है कि सरकार गिराने में कमलनाथ के साथ-साथ सरकार के मंत्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खासकर जनसंपर्क मंत्री पी.सी. शर्मा ने तो सरकार की छवि खराब करने में बिलकुल भी कोताही नही बरती। पी.सी.शर्मा ने जनसंपर्क को खुद का विभाग मानकर कई गोलमाल किए। पत्रकारों को कई आर्थिक यातनाएं दीं। इन 15 माह में कमलनाथ सरकार ने प्रदेश की जनता के साथ जो भेदभाव और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है उसकी कीमत कुर्सी गंवाकर चुकाई।